प्रतिदृष्टान्तसमा
वादी के द्वारा कहे गये दृष्टांत स्वरूप करके प्रतिवादी द्वारा जो दूषण उठाया जाता है वह प्रतिदृष्टांत समाजाति इष्ट की गई है। इसका उदाहरण यूँ है कि (क्रियावत्त्व गुण के कारण आत्मा क्रियावान है, जैसे कि लोष्ट) इसी आत्मा के क्रियावतत्त्व साधने में प्रयुक्त किये गये दृष्टांत के प्रतिकूल द्रष्टांत करके दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान देता है कि क्रिया के हेतुभूत गुण के (वायु के साथ) युक्त हो रहा आकाश तत्त्व निष्क्रिय देखा जाता है वैसा उसी के समान आत्मा भी क्रियारहित हो जाये । क्रिया का हेतु आकाश का कौनसा गुण है ? ऐसा कहने पर प्रतिवादी की ओर से उत्तर दिया जाता है कि वायु के साथ आकाश का जो संयोग है वह क्रिया का कारण गुण है। जैसे कि वेग नामक संस्कार की अपेक्षा रखता हुआ वृक्ष में वायु का संयोग, क्रिया का कारण हो रहा है। अतः आकाश के समान आत्मा क्रिया हेतु गुण के सद्भाव होने पर भी क्रियारहित हो जाओ।