प्रतिज्ञा हानि
साध्य धर्म के विरुद्ध से प्रतिबंध करने पर प्रतिदृष्टांत में मानने वाला, प्रतिज्ञा छोड़ता है, उसको प्रतिज्ञा हानि कहते हैं। जैसे- इन्द्रिय के विषय होने से घट की नाईं, शब्द अनित्य है। ऐसी प्रतिज्ञा करने पर दूसरा कहता है कि इन नित्य जाति में इन्द्रिय विषयत्व है, तो वैसे ही शब्द भी क्यों नहीं ? ऐसे निषेध पर यह कहता है कि जो इन्द्रिय विषय जाति नित्य हैं तो घट भी नित्य हो ऐसा मानने वाला साधक दृष्टांत का नित्यत्व मानकर निगमन पर्यंत ही पक्ष को छोड़ता है। पक्ष का छोड़ना प्रतिज्ञा हानि है क्योंकि पक्ष प्रतिज्ञा के आश्रय है।