प्रतिज्ञा सन्यास
पक्ष के निषध होने पर प्रतिज्ञान ‘माने हुए अर्थ का छोड़ देना’ प्रतिज्ञा सन्यास कहलाता है। जैसे – इन्द्रिय विषय होने से शब्द अनित्य है, इस प्रकार कहने पर दूसरा कहे कि जाति इन्द्रिय विषय और अनित्य नहीं । इसी प्रकार शब्द भी इन्द्रिय विषय है पर अनित्य न हो। इस प्रकार पक्ष के निषेध होने पर यदि कहे कि कौन कहता है कि शब्द अनित्य है, यह प्रतिज्ञान किये हुए अर्थ का छिपाना है। इसी को प्रतिज्ञा सन्यास कहते हैं ।