प्रतिक्रमण श्रुतज्ञान
सात प्रकार के प्रतिक्रमण नामक अंग बाह्य वर्णन करता है। किये हुए अतिचारों का मन से त्याग करना यह मनः प्रतिक्रमण है। हाय ! मैंने पाप कार्य किया है ऐसा मन से विचार करना ये मनः प्रतिक्रमण हैं सूत्रों का उच्चारण करना यह वाक्य प्रतिक्रमण हैं शरीर के द्वारा दुष्कृत्यों का आचरण न करना यह कायकृत प्रतिक्रमण है। प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान में भेद यह है कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के निमित्त से अपने शरीर में लगे हुये दोषों का त्याग करना प्रत्याख्यान है। और प्रत्याख्यान से अप्रत्याख्यान को प्राप्त होकर पुनः प्रत्याख्यान को प्राप्त होना प्रतिक्रमण है। सामायिक एवं प्रतिक्रमण में यह अंतर है। कि सावद्य मन, वचन, काय की प्रवृत्तियों से विरक्त होना सामायिक का लक्षण है। और अशुभ मनो वाक्काय की निवृत्ति होना यह प्रतिक्रमण है।