प्रज्ञापन नय
पूर्व उत्तर भाव प्रज्ञापन नय की अपेक्षा से उपचार कल्पना द्वारा एक प्रदेशी भी अणु को बहुप्रदेशी कहा गया है। पूर्वभाव प्रज्ञापन नय की अपेक्षा से उपशांत कषाय आदि गुणस्थानों में भी शुक्ल लेश्या को औदयिकी कहा है। भूत प्रज्ञापन नय की अपेक्षा जन्म से सामान्यतयः उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में सिद्ध होता है। विशेष की अपेक्षा सुषमा- दुषमा काल के अंतिम भाग में और संहरण की अपेक्षा सब कालों में सिद्ध होता है। जिसका आगम संस्कार नष्ट हो गया ऐसे जीव में भी भूतपूर्व प्रज्ञापन नय की अपेक्षा आगम संज्ञा बन जाती है। ऋजुसूत्र नय तथा तीन शब्द नयों को प्रत्युत्पन्न नय कहते हैं। शेष तीन नयों को प्रत्युत्पन्न भी कहते हैं और प्रज्ञापन नय भी कहते हैं ।