पुद्गल विपाकी
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जिन कर्मों का विपाक अर्थात् फल मुख्यतः पुद्गल रूप शरीर में होता है, वे पुद्गल-विपाकी कर्म हैं। इनके निमित्त से जीव के शरीर आदि की संरचना होती है ।
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