पाक्षिक श्रावक
मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थ्य भाव से वृद्धि को प्राप्त होते हुए समस्त हिंसा का त्याग करना जैनों का पक्ष कहलाता है इसलिए ग्रहस्थ धर्म में जिनेन्द्र भगवान के प्रति श्रद्धा रखता हुआ जो श्रावक हिंसा आदि पाँच पापों को स्थूल रूप से त्याग करने का अभ्यास करता है वह पाक्षिक श्रावक कहलाता है वह हिंसा आदि से बचने के लिए सबसे पहले माँस, मदिरा एवं शहद तथा पंच उदम्बर फलों को छोड़ता है वह जिन पूजा, गुरूजनों की सेवा, स्वाध्याय, संयम, तप और दान रूप गृहस्थों के लिए प्रतिदिन करने योग्य आवश्यक कार्य भी करता है।