परोदय बंध
पर अर्थात् अन्य कर्म प्रवृति के उदय में जिनका बन्ध होता है वे परोदय बंधी प्रकृतियाँ कहलाती हैं तीर्थंकर आहारक शरीर आहारक आंगोपांग, वैक्रयिक शरीर, वैक्रियक आंगोपांग, नरकगति, नरक गत्यानुपूर्वी, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकआयु, देवायु ये ग्यारह कर्म प्रकृतियाँ परोदय बंधी है इनके उदयकाल में इन्ही का बन्ध हो, ऐसा नियम नहीं है । ये किसी अन्य कर्म प्रकृति के उदय में भी बंध को प्राप्त हो जाती हैं।