परवश अतिचार
परवश होने से जो अतिचार होते हैं, उनका विवेचन इस प्रकार है। उन्माद, पित्त, पिशाच इत्यादि कारणों से परवश होने से अतिचार होते हैं अथवा जाति के लोगों से पकड़ने पर बलात्कार से इत्र, पुष्प बगैरह का सेवन किया जाना, त्यागे हुए पदार्थों का भक्षण करना, रात्रि भोजन करना, सुगन्धित करने वाला पदार्थ ताम्बूल बगैरह का भक्षण करना, स्त्री अथवा नपुंसकों के द्वारा बलात्कार से ब्रह्मचर्य का विनाश होना ऐसे कार्य परवशता से होने से अतिचार लगते हैं, इसका नाम ही परवश अतिचार है। इनकी आलोचना करना क्षपक का कर्तव्य है।