परमेष्ठी
जो परमपद में तिष्ठता है, वह परमेष्ठी परमात्मा होता है। जो इन्द्र, चन्द्र, धरणेन्द्र के द्वारा वन्दित, ऐसे परमपद में तिष्ठता है, वह परमेष्ठी होता है। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पंचपरमेष्ठी हैं, ते भी आत्माविषै चेष्टा रूप हैं । आत्मा की अवस्था है, इसलिए निश्चय से मेरे आत्मा ही का सरणा है।