पंचमकाल
अवसर्पिणी के दुषमासुषमा काल के उपरान्त दुषमा नाम का पंचमकाल आता है, जिसमें मनुष्य सुख दुःख से संयुक्त होते हैं। 23वें तीर्थंकर तक मिथ्या मतों का प्रचार अधिक न होगा, 24वें तीर्थंकर के काल में कुलिंगी उत्पन्न हो जाएँगे। साधु तपश्चरण का भार वहन न कर सकेंगे। मूल व उत्तरगुणों को भी साधु भंग कर देंगे। मनुष्य दुराचारी हो जायेंगे। नीच कुलीन राजा होंगे। प्रजा जैन मुनियों को छोड़कर अन्य धुओं के पास धर्म श्रवण करने लगेगी। व्यंतर देवों की उपासना का प्रचार होगा। धर्म म्लेच्छ खण्डों में रह जावेगा। ऋद्धि धारी मुनि नहीं होंगे। मिथ्या ब्राह्मणों का सत्कार होगा। तरुण अवस्था में ही मुनि पद ठहरा जा सकेगा। अवधि, मनःपर्यय ज्ञान न होगा। मुनि एकल विहारी होगें । केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होगा। प्रजा चारित्र भ्रष्ट हो जाएगी। औषधियों के रस नष्ट हो जाएँगे । ( ये सब पंचम काल का प्रभाव है ऐसा पूर्व निमित्तज्ञानियों ने बताया )