नैगमनय
नैगम का अर्थ संकल्प है। अतः अनिष्पन्न अर्थ में संकल्प मात्र को ग्रहण करके कथन करने वाला नैगमनय है। आशय यह है कि जो अभी उत्पन्न नहीं हुआ है भविष्य में उत्पन्न होने वाला है ऐसे पदार्थ में जो संकल्प मात्र को ग्रहण करता है, उसे नैगमनय कहते हैं। जैसे- ईंधन, जल आदि लाते हुए किसी व्यक्ति से कोई पूछता है कि आप क्या कर रहे हैं, तो वह कहता है कि भात पका रहा हूँ। उस समय भात पका नहीं है केवल भात पकाने का संकल्प किया गया है। इसलिए उसका यह कहना कि ‘भात पका रहा हूँ’ लोक-व्यवहार में सत्य माना जाता है। इसी प्रकार जितना भी लोक – व्यवहार है वह सब नैगमनय का विषय है। भूत, भावि और वर्तमान के भेद से नैगमनय तीन प्रकार का है- अतीत काल में ‘आज हुआ है’ ऐसा वर्तमान का आरोप या उपचार करना भूत नैगमनय है। होने वाले कार्य को ‘हो चुका’ ऐसा भूतवत् कथन करना भावी नैगमनय है। और जो कार्य करना प्रारंभ कर दिया गया है परन्तु अभी तक जो निष्पन्न नहीं हुआ है, कुछ निष्पन्न है और कुछ अनिष्पन्न है, उस कार्य को ‘हो गया’ ऐसा निष्पन्नवत् कथन करना वर्तमान नैगमनय है। आज दीपावली के दिन भगवान वर्धमान मोक्ष गए हैं’ ऐसा कहना भूत नैगमनय है। अभी जो पदार्थ अनिष्पन्न है उसे भाविकाल में निष्पन्न होने वाला है उसे निष्पन्नवत् कहना भावि नैगमनय है। जैसे जो अभी प्रस्थ नहीं बना है ऐसे काठ के टुकड़े को ही प्रस्थ कह देना । अधपके चावलों को भी भात पकता है ऐसा कह देना वर्तमान नैगमनय है।