निषेध साधक हेतु
सामान्य इस जीव के मिथ्यात्व नहीं है, क्योंकि आस्तिकता अन्यथा नहीं हो सकती। यहाँ आस्तिकता निषेध साधक है क्योंकि आस्तिकता सर्वज्ञ वीतराग द्वारा प्रतिपादिक तत्वार्थों का श्रद्धान रूप है। वह मिथ्यात्व वाले जीव के नहीं हो सकती इसलिए वह विवक्षित जीव में मिथ्यात्व के भाव को सिद्ध करता है।