निशि भोजन त्याग
रात्रि भोजन न करना सो रात्रि भोजन यह निशि भोजन त्याग है। सूर्य के उदय और अस्त काल की तीन घड़ी छोड़कर इसके मध्यकाल में कोई भी समय आहार ग्रहण करने के योग्य काल है। अणुव्रती श्रावकों को सूर्य निकलने के पश्चात् आधे प्रहर तक और अस्त से आधे प्रहर से पहले भोजन कर लेना चाहिए । इसी प्रकार उन्होंने रात्रि को या जिस समय पानी बरस रहा हो अथवा काली घटा छाने से अंधेरा हो गया हो उस समय भोजन नहीं करना चाहिए। रात्रि भोजन त्याग व्रत का पालन करने वाले श्रावक के दिन के अंतिम और प्रथम मुहूर्त में भोजन करना व रोग को दूर करने के लिए आम व घी बगैरह का सेवन करना अतिचार है। रात्रि भोजन त्याग को छठा अंग माना गया है। इसका अंतर भाव आलोकितपान भोजन नाम के अहिंसा व्रत की भावना के अंतर्गत भी किया गया है। ‘जो मनुष्य मन, वचन, व काय से रात्रि भोजन का त्याग कर देता है वह निरन्तर अहिंसा को पालन करता है। ऐसा सिद्धांत है जो पुरूष रात्रि भोजन को छोड़ता है वह एक वर्ष में 6 महीने का उपवास करता है। रात्रि भोजन का त्याग करने के कारण वह भोजन और व्यापार आदि संबंधी संपूर्ण आरम्भ रात्रि को भी नहीं करता । सूर्य के प्रकाश के बिना रात्रि भोजन करने वाले पुरुषों के जलाए हुए, दीपक, लाईट आदि में भोजन में सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति रोकी नहीं जा सकती अतएव रात्रि भोजन प्रत्यक्ष हिंसा है। रात्रि भोजन का त्याग करना पाक्षिक श्रावक का कुलाचार या कुल क्रिया है कुल क्रिया के बिना मनुष्य पाक्षिक श्रावक नहीं हो सकता।