निर्माल्य
मंत्रोच्चार या अभिप्रायपूर्वक सच्चे देव शास्त्र गुरू के सम्मुख चढ़ाई गई वस्तु निर्माल्य कहलाती है। निर्माल्य दो प्रकार का होता है – देव द्रव्य और देव धन | जो नैवेद्य, जल, चंदन आदि द्रव्य भगवान के सम्मुख अप्रित की जाती है वह देवद्रव्य रूप निर्माल्य है। यदि चढ़ाने वाला इस सामग्री को स्वयं प्रसाद रूप में ग्रहण करे या अन्य किसी को प्रसाद की तरह दे तो उसके अन्तराय कर्म का बंध होता है। मंदिर के जीर्णोद्धार, जिनबिंब – प्रतिष्ठा, वेदी – प्रतिष्ठा, जिन- पूजन और रथोत्सव आदि धर्म कार्य के लिए जो दान – राशि प्रदान की जाती है वह देवधन या निर्माल्य है। जो लोभवश निर्माल्य ग्रहण करता है, वह नरकगामी होता है।