निर्जरानुप्रेक्षा
जीव के पूर्वबद्ध कर्म अपना फल देकर झड़ जाते हैं – ऐसी सविपाक निर्जरा सभी जीवों के निरंतर होती रहती है। विशेष तप के द्वारा की गयी अविपाक निर्जरा केवल सम्यग्दृष्टि व्रती श्रावक और मुनियों के होती है, जो जीव को संसार के दुखों से मुक्त करती हैं। इस प्रकार निर्जरा के गुणदोषों का चिन्तवन करना निर्जरानुप्रेक्षा कहलाती है।