नित्यानित्यसमाजाति
साधर्म्य मात्र से तुल्यधर्म सहीपना सिद्ध हो जाने से सभी पदार्थों में अनित्यत्व का प्रसंग उठाना अनित्य समाजाति है। जैसे घट के साथ कृतकत्व आदि करके साधर्म्य हो जाने से यदि शब्द का अनित्यपना साधा जावेगा तब तो यह घट के सत्व, प्रमेयत्व आदि रूप साधर्म्य संभव होने से सब पदार्थों के अनित्यपना का प्रसंग हो जाएगा। इस प्रकार प्रत्यवस्थान देना अनित्य समाजाति है, अनित्य भी स्वयं नित्य है। ऐसी प्रतिक्रिया करने वाले वादी पर प्रतिवादी प्रश्न उठता है, कि वह शब्द के आधार पर ठहरने वाला अनित्य धर्म क्या नित्य है अथवा अनित्य है। प्रथम पक्ष के अनुसार धर्म को तीनों कालों तक नित्य ठहराने वाला धर्मी नित्य ही होना चाहिए। द्वितीय विकल्प के अनुसार अनित्यपन धर्म को नाश हो जाने पर शब्द के नित्यपन का सद्भाव हो जाने से शब्द नित्य सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार नित्यत्व का प्रत्यवस्थान उठाना नित्यसमाजाति है।