नामसम
नानामिनोती अर्थात् नाना रूप से जो जानता है, उसे नाम कहते हैं । अर्थात् अनेक प्रकारों से अर्थ ज्ञान को नाम भेद द्वारा भेद करने के कारण एकादि अक्षरों स्वरूप बारह अंगों के अनुयोगों के मध्य में स्थित द्रव्य श्रुतज्ञान के भेद नाम यह अभिप्राय है, उस नाम के अर्थात् द्रव्यश्रुत के साथ रहने अर्थात उत्पन्न होने के कारण शेष आचार्यों में स्थित श्रुतज्ञान नामसम कहलाता है।