नमस्कार
पंचपरमेष्ठी के गुणों का स्मरण और कीर्तन करना तथा हाथ जोड़कर चरणों में झुकना नमस्कार कहलाता है। जिनेन्द्र के ज्ञानादिक का कीर्तन करना, मन, वचन, काय की अपेक्षा तीन प्रकार का है जिसमें कायिक प्रणाम पाँच तरह का है। केवल सिर के नमाने को एकांग, दोनों हाथों को नमाने से द्वययांग, दोनों हाथ और सिर के नमाने से भयंग, दोनों हाथ और दोनों घुटने नमाने पर चतुरंग तथा दोनों हाथ, दोनों घुटने और मस्तक नमाने पर पंचांग नमस्कार कहा जाता है । सो इन पाँचों में कैसा नमस्कार कहाँ करना चाहिए ऐसा जानकर यथास्थान यथायोग्य नमस्कार करना चाहिए। जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार तीन बार किया जाता है। इसलिए तीन बार अवनमन करना कहा है। शुद्ध मन, धौतपाद और जिनेन्द्र के दर्शन से उत्पन्न हुए हर्ष से पुलकित नयनों से जिनदेव के आगे बैठना (पंच नमस्कार “करना) प्रथम अवनति है तथा जो उठकर जिनेन्द्र आदि के सामने प्रतिज्ञा कर बैठना- ये दूसरी अवनति है। फिर उठकर सामायिक दण्डक के द्वारा आत्म- – शुद्धि करके कषाय सहित देह का उत्सर्ग करके अर्थात् कायोत्सर्ग करके जिनदेव के अनन्त गुणों का ध्यान करके चौबीस तीर्थंकरों की वंदना करके फिर जिन, जिनालय और गुरू की स्तुति करके जो भूमि में बैठना ( नमस्कार करना) ये तीसरी अवनति है। —