ध्रुवप्रकृतियाँ
पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, पाँच अन्तराय सभी अर्थात् सोलह कषाय, मिथ्यात्व, निर्माण वर्णादि चार भय, जगुप्सा, अगुरूलघु, कार्मण शरीर और उपधात ये सैंतालीस ध्रुवबंधी प्रकृतियाँ है। अभव्य के बंध को ध्रुव बंध कहते है। जिन प्रकृतियों का प्रत्यय जिस किसी भी जीव में अनादि एवं ध्रुव भव से पाया जाता है, निरन्तर बंध हुआ करे सो ध्रुव बंध है।