ध्येय
ध्यान के आलम्बन को ध्येय कहते हैं। ध्येय चेतन-अचेतन दोनों प्रकार के हो सकते हैं। जो जीव शुभ-अशुभ परिणाम में निमित्त बनते हैं, जो शुभ और अशुभ परिणामों का कारण हो उसे ध्येय कहते हैं। जिनेन्द्र भगवान द्वारा निद्रिष्ट नौ पदार्थ ध्येय हैं। अपने-अपने स्वरूप में यथा स्थित वस्तु ध्येय है। आत्मा के ध्यान में भी वस्तुतया पंचपरमेष्ठी का ध्यान किये जाने योग्य हैं। जो शुद्ध द्रव्य की शक्ति रूप शुद्ध परम पारिणामिक भाव रूप परम निश्चय मोक्ष है वह तो जीव में पहले ही विद्यमान है। अब प्रगट हो, ऐसा नहीं है। रागादिक विकल्पों से रहित मोक्ष का कारण ही ध्यान पर्याय में वही मोक्ष (त्रिकाल निरपधि शुद्धात्म स्वरूप) ध्येय होता है। बारह अनुप्रेक्षायें, उपशम श्रेणी, क्षपक श्रेणी पर आरोहण विधि तैईस वर्गणायें, पाँच परिवर्तन, स्थिति, अनुभाग, प्रकृति और प्रदेश आदि ये सब ध्यान करने योग्य हैं।