ध्यान शुद्धि
स्पर्श रस आदि विषयों में दौड़ते चंचल क्रोध को प्राप्त हुए । भंयकर ऐसे इन्द्रिय रूपी चोर मन-वचन-काय गुप्ति वाले चरित्र में उद्यमी साधुजनों ने अपने बस में कर लिये। जैसे मस्त हाथी परिबंध कर रोका गया निकलने में समर्थ नही होता, उसी तरह मनरूपी हाथी, ध्यान रूपी परिबंध प्राप्त हुआ धीर अति प्रचण्ड होने पर भी मुनियों का वैराग्य रूपी रस्से पर संयम बंध को प्राप्त हुआ निकलने में समर्थ नही हो सकता। ये इन्द्रिय रूपी घोड़े स्वाभाविक राग-द्वेष कर प्रेरित हुए धर्म ध्यान रूपी रथ को विषय रूपी कुमार्ग में ले जाते हैं। इसलिए एकाग्र मन रूपी लगाम को बलवान करो ।