धातकी खण्ड
मध्यलोक में स्थित एक द्वीप, धातकी खण्ड के भीतर उत्तर कुरू और देव कुरू क्षेत्रों में धातकी वृक्ष स्थित है। इसी कारण इस द्वीप का धातकी खण्ड यह सार्थक नाम है। लवणोदय को वेष्टित करके चार लाख योजन विस्तृत ये द्वितीय द्वीप है। इसके चारों तरफ एक जगती है। इसके उत्तर व दक्षिण दिशा में उत्तर-दक्षिण लम्बायमान दो इष्वाकार पर्वत हैं जिनसे यह द्वीप पूर्व व पश्चिम रूप दो भागों में विभक्त हो जाता है। प्रत्येक पर्वत पर चार कूट हैं। प्रथम कूट पर जिन मन्दिर है और शेष पर व्यन्तरदेव रहते हैं। इस द्वीप की दो रचनायें हैं- पूर्व धातकी और पश्चिम धातकी। दोनों में पर्वत, क्षेत्र, नदी, कूट, आदि सभी जम्बूद्वीप के समान हैं । दक्षिण इष्वाकार के दोनों तरफ दो भरत हैं तथा उत्तर इष्वाकार के दोनों तरफ दो ऐरावत हैं। तहाँ सर्वकुल पर्वत के दोनों सिरों पर समान विस्तार को धरे पहिओं के आरोंवत् हैं और क्षेत्र उनके मध्यवर्ती छिद्रोंवत् हैं, जिनके अभ्यन्तर भाग का विस्तार कम और बाह्य भाग का विस्तार अधिक है। तहाँ भी सर्व कथन पूर्व व पश्चिम दोनों धातकी खण्डों में जम्बूद्वीप के समान हैं।