जीव विपाकी
जिन कर्मों का विपाक अर्थात् फल मुख्यतः जीव में होता है वे जीवविपाकी कर्म कहलाते हैं। इन कर्मों के उदय से जीव के ज्ञान-दर्शन आदि गुण ढक जाते हैं। जीव विपाकी कर्म प्रकृत्तियाँ 78 हैं। घातिया कर्म की सभी 47 प्रकृतियाँ वेदनीय की दोनों, गोत्र की दोनों और नामकर्म की 27 कर्म प्रकृतियाँ जीव विपाकी हैं। नामकर्म की 27 प्रकृतियाँ-तीर्थंकर, उच्छवास बादरः सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशस्कीर्ति, अयशस्कीर्ति, त्रस, स्थावर प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायोगति, सुभग, दुर्भग, नरक, तिर्यंच मनुष्य व देवगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जाति ।