जाति
1. द्रव्यों के आपस में भेद रहते हुए भी जिससे समान बुद्धि उत्पन्न हो उसे जाति कहते हैं अथवा तद्भव और सादृश्य लक्षण वाले सामान्य को जाति कहते हैं। गौ, मनुष्य, घड़ा, वस्त्र, स्तम्भ आदि जाति निमित्तक है। 2 माता के वंश को जाति कहते हैं। किसी जाति विशेष का मद करना सम्यग्दर्शन का दोष है। 3. नारकादि गतियों में जिस अव्यभिचारी अर्थात् (निर्दोष रूप) सादृश्य से एकपने का बोध होता है वह जाति है और इसका निमित्त जाति नामकर्म है। 4. साधर्म्य और वैधर्म्य से जो प्रत्यवस्थान (दूषण) दिया जाता है उसको जाति कहते हैं। (न्याय की अपेक्षा ) । 5. चार उत्तम जातियाँ मानी गई हैं दिव्या, विजयाश्रिता, परमा और स्वा । इन्द्र के दिव्या जाति होती है, चक्रवर्तियों के विजयाश्रिता, अर्हन्त देव के परमा और मुक्त जीवों के स्वा- जाति होती है।