चैत्यालय
स्वपर की आत्मा को जानने वाला ज्ञानी आत्मा जिसमें निवास करता हो ऐसे पंचमहाव्रत संयुक्त मुनि को चैत्यगृह कहा गया है अथवा क्रमबद्ध भव्यजीवों के समूह को जानने वाला आत्मा निश्चय से चैत्यगृह या चैत्यालय है तथा व्यवहारनय से निश्चय चैत्यालय की प्राप्ति में कारणभूत अन्य जो ईंट, पत्थर व काष्ठादि से बनाए जाते हैं तथा जिनमें भगवत् सर्वज्ञ वीतराग की प्रतिमा रहती है वह चैत्यगृह या चैत्यालय है । चैत्यालय दो प्रकार के होते हैं- कृत्रिम चैत्यालय और अकृत्रिम चैत्यालय । मनुष्य लोक में मनुष्यों द्वारा निर्मित चैत्यगृहों को कृत्रिम चैत्यालय कहते हैं तथा शाश्वत स्वप्रतिष्ठित और सदैव प्रकाशित रहने वाले चैत्यगृहों को अकृत्रिम चैत्यालय कहते हैं। सर्व (भवनवासी देवों के) अकृत्रिम जिनालयों में चार-चार गोपुरों से युक्त तीन कोट, प्रत्येक वीथी(मार्ग) में एक में एक मानस्तम्भ व नौ स्तूप तथा कोटों के अन्तराल में क्रम से वनभूमि, ध्वजभूमि और चैत्यभूमि होती है वनभूमि में चैत्यवृक्ष है। ध्वजभूमि में हाथी आदि चिन्हों से युक्त महाध्वजाएँ और एक महाध्वजा के आश्रित 108 छोटी ध्वजाएँ हैं। जिन भवनों में सिंहासन आदि से युक्त हाथ में चँवर लिए हुए नागयक्ष युगल से युक्त और नाना प्रकार के रत्नों से युक्त जिन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। भवनवासी देवों के भवन में सात करोड़ बहत्तर लाख जिनालय हैं जगत्प्रतर के संख्यात भाग में 300 योजनों के वर्ग का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतने व्यन्तर लोक में जिनालय है ज्योतिष्क देवों के अकृत्रिम जिनालयों की संख्या असंख्यात है। उर्ध्व लोक (वैमानिक देवों) में सम्पूर्ण जिनालयों की संख्या चौरासी लाख, सत्तानवें हजार तेतीस हैं। मध्यलोक में कुल 458 अकृत्रिम जिनालय है मनुष्य लोक में 398 नंदीश्वर द्वीप में 52, कुण्डलगिरि पर 4, और रूचकगिरि पर 4 ऐसे कुल 458 जिनालय है।