नंदीश्वर द्वीप
यह मध्यम लोक का अष्टम द्वीप है। इस द्वीप में 16 वापियाँ, 4 अंजनगिरि, 16 दधिमुख और 32 रतिकर नाम के कुल 52 पर्वत है। प्रत्येक पर्वत पर एक-एक चैत्यालय है। प्रत्येक अष्टाह्निका पर्व में अर्थात् कार्तिक, फाल्गुन व अषाढ़ मास के अंतिम आठ आठ दिनों में देवलोग उस द्वीप में जाकर और मनुष्य लोग अपने मंदिरों में और चैत्यालयों में उस द्वीप की स्थापना करके खूब भक्तिभाव से इन 52 जिनालयों की पूजा करते हैं। इसका कुल विस्तार 1638400,000 योजन प्रमाण है इसके बहुमध्य भाग में पूर्व दिशा की ओर काले रंग का एक अंजनगिरि पर्वत है उस अंजनगिरि के चारों ओर एक लाख योजन छोड़कर चार वापियाँ है, चारों वापियों का भीतरी अन्तराल 65 हजार 45 योजन है और बाह्य अंतर 2 लाख 23 हजार 661 योजन है। प्रत्येक भाग की चारों दिशाओं में अशोक, सप्तच्छ, चंपक और आम्र नाम के चार वन है। इस प्रकार द्वीप की एक दिशा में सोलह और चारों दिशाओं में 64 वन है। इन सब पर अवंतस आदि 64 देव रहते है। प्रत्येक वापी में सफेद रंग का एक- एक दधिमुख पर्वत है। प्रत्येक वापी के दोनों कोनों पर लाल रंग के दो रतिकर पर्वत हैं जिन मंदिर केवल बाहर वाले दो रतिकर पर ही होते है, अभ्यतंर रतिकरों पर देव पूजा करते हैं, इस प्रकार एक दिशा में एक अंजन गिरि, चार दधिमुख, आठ रतिकर ये सब मिलकर तेरह पर्वत हैं, इनके ऊपर तेरह जिनमंदिर स्थित है इसी प्रकार शेष तीन दिशाओं में भी पर्वत द्रह वन व जिनमंदिर जानना ‘कुल’ मिलकर 52 पर्वत, 52 जिनमंदिर, 16 वापियाँ और 64 वन हैं। अष्टाह्निका पर्व में सौधर्म इंद्र और देवगण बड़ी भक्ति से इन मंदिरों की पूजा करते हैं। वहाँ पूर्व दिशा में कल्पवासी दक्षिण में भवनवासी, पश्चिम में व्यंतर और उत्तर में ज्योतिषी देव पूजा करते हैं ।