चर्या श्रावक
धर्म के लिए अपने किसी देवता के लिए, किसी मंत्र को सिद्ध करने के लिए, औषधियों के लिए, और भोग-उपभोग के लिए कभी हिंसा नहीं करते। यदि किसी कारण से हिंसा हो गई हो तो विधिपूर्वक प्रायश्चित कर विशुद्धता धारण करते हैं। तथा परिग्रह का त्याग करने के समय, अपने घर धर्म और अपने वंश में उत्पन्न हुए, पुत्र आदि को समप्रण कर जब तक वे, तब तक उनके (श्रावक ) चर्या कहलाता हैं। (यह चर्या दार्शनिक से अनुमति व्रत प्रतिमा पर्यंत होती है । )