गति नाम कर्म
एक भव से दूसरे भव को जाने को गति कहते हैं। जिसके द्वारा जीव नरकादि चारों गतियों में गमन करता है वह गति नाम कर्म कहलाता है अथवा जिसके उदय से आत्मा भवान्तर को जाता है वह गति नामकर्म है। गति चार प्रकार की है- नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति और देव गति । नरक गति नामकर्म के उदय से जीव के नारक भाव होता है। इसी प्रकार मनुष्य देव व तिर्यंच गति नाम कर्म के उदय से जीव के मनुष्यपने का भाव, देवपने का भाव व तिर्यंचपने का भाव होता है। जैसे कि तिर्यंच अवस्था में तिर्यंचों की तरह तिर्यंच पर्याय के अनुरूप जो भाव संतति होती है वह उस तिर्यंच पर्याय में ही होती है दूसरी गति में नहीं होती। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है जो मनुष्य की सम्पूर्ण पर्यायों में उत्पन्न कराती है उसे मनुष्य गति कहते हैं अथवा मनुष्यगति नाम कर्म के उदय से प्राप्त हुए मनुष्य पर्यायों के समूह को मनुष्य गति कहते हैं । इसी प्रकार अन्य गतियाँ भी जाननी चाहिए। –