कुसंगति
सज्जन पुरुष भी दुर्जन के संग से अपना उज्ज्वल गुण छोड़ देता है। अग्नि के सहवास से ठण्डा भी जल अपना ठण्डापन क्या गर्म नहीं हो जाता, अतः हो ही जाता है। दुर्जन के दोषों के संसर्ग करने से सज्जन भी नीच होता है। बहुत कीमत की पुष्पमाला भी प्रेत के शव के संसर्ग से कौडी की कीमत की होती है। दुर्जन के संसर्ग से दोषरहित भी मुनि लोकों के द्वारा दोषयुक्त गिना जाता है। मदिराग्रह में जाकर कोई ब्राह्मण दूध पीवे तब भी शराबी है, ऐसा लोग मानते हैं। महातपस्वी दुर्जनों के दोष से अनर्थ में पड़ते हैं । अर्थात् दोष तो दुर्जन करता है पर फल सज्जन को भोगना पड़ता है। जैसे उल्लू के दोष से निष्पाप हंस पक्षी मारा गया ।