उपाध्याय
जो सम्पूर्ण द्वादशांग का अभ्यास करके मोक्षमार्ग में स्थित हैं तथा मोक्ष के इच्छुक मुनियों को उपदेश देते हैं उन मुनीश्वरों को उपाध्याय परमेष्ठी कहते हैं। अथवा चौदह विद्या स्थानों के व्याख्यान करने वाले या तत्कालीन परमागम का व्याख्यान करने वाले उपाध्याय होते हैं। वे शिष्यों के संग्रह अनुग्रह करने आदि गुणों को छोड़कर आचार्य के शेष समस्त गुणों से युक्त होते हैं। उपाध्याय परमेष्ठी शंकाओं का समाधान करने वाले, सुवक्ता, वाग्ब्रह्म, सिद्धान्त शास्त्र व आगम के पारगामी वार्तिक तथा सूत्रों को शब्द और अर्थ के द्वारा सिद्ध करने वाले होने से कवि, अर्थ में मधुरता के द्योतक और वक्तृव्य के मार्ग में अग्रणी होते हैं। उपाध्यायपने में शास्त्र का विशेष अभ्यास ही कारण है क्योंकि जो स्वयं अध्ययन करता है और शिष्यों को भी अध्ययन कराता है, वही गुरू उपाध्याय है। उपाध्याय में व्रतादि के पालन करने की शेष विधि सर्वमुनियों के समान है।