आनुपूर्वी नामकर्म
जिस कर्म के उदय से एक गति से दूसरी गति में जाते हुए जीव के पूर्व शरीर का आकार नष्ट नहीं होता है वह आनुपूर्वी नामकर्म है। आनुपूर्वी नामकर्म के उदय से ही जीव का अपनी इच्छित गति में गमन होता है। यह चार प्रकार का है- नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यगत्यानुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी।