संज्वलन
जिसके सद्भाव में संयम बना रहता है अर्थात् सकल चारित्र का विनाश नहीं करते हुए भी जो उदय को प्राप्त होती है यह संज्वलन कषाय है। इतना अवश्य है कि संज्वलन कषाय जीव के यथाख्यात चारित्र की घातक है अर्थात् इसके उदय में जीव को यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति नहीं होती। संज्वलन कषाय के क्रोध, मान, माया और लोभ ऐसे चार रूप हैं उदय का अभाव होने पर भी कषाय का संस्कार जितने काल तक बना रहे उसका नाम वासना काल है। संज्वलन कषायों का वासना काल मात्र अन्तर्मुहूर्त है।