योग दर्शन
मन और इन्द्रिय का निग्रह ही इसका मुख्य प्रयोजन है। योग का अर्थ समाधि है। राजयोग और हठयोग के भेद से यह दो प्रकार का है। पातान्जलि योग राजयोग है तथा प्राणायाम आदि से परमात्मा का साक्षात्कार करना हठयोग है। ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के भेद से तीन प्रकार का और मंत्रयोग, लययोग, हठयोग और राजयोग के भेद से चार प्रकार का है। श्वेताम्बर, तैत्तिरीय आदि प्राचीन उपनिषदों में योग समाधि के अर्थ में पाया जाता है और शाण्डिल्य आदि उपनिषदों में उसकी प्रक्रियाओं का सांगोपांग वर्णन है। योग के आठ अंग हैं – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह रूप मन, वचन, काय का संयम यम है। शौच, सन्तोष, तपस्या, स्वाध्याय और ईश्वर परिणाम ये नियम है। पद्मासन, वीरासन आदि आसन हैं। श्वांसोच्छवास का गति निरोध प्राणायाम है। इन्द्रियों को अन्तर्मुखी करना प्रत्याहार है। विकल्प पूर्वक किसी एक काल्पनिक ध्येय में चित्त को निष्ठ करना धारणा है। ध्यान, ध्याता व ध्येय सहित चित्त का एकाग्र प्रवाह ध्यान है। ध्यान, ध्याता व ध्येय रहित निष्ठ चित्त समाधि है।