भिक्षाशुद्धि
आचार सूत्र के अनुसार देशकाल की प्रकृति को जानने में कुशल है चन्द्रमा की गति के समान हीन या अधिक घरों की जिसमें मर्यादा है ऐसी विशिष्ट विधानवाली हो ऐसी भिक्षाशुद्धि है दीन या याचक वृत्ति से रहित होकर प्रासुक आहार ढूंढना भिक्षाशुद्धि है। दीन-अनाथ, दानशाला, विवाह, यज्ञ भोजनादि का जिसमें परिहार होता है ऐसी भिक्षाशुद्धि लोक में निन्दनीय व गर्हित कुलों का त्याग कराने वाली है।