भवस्थिति
एक भव की स्थिति भवस्थिति कहलाती है और एक काय का त्याग किये बिना अनेक भव विषय की स्थिति होती है। तीन आयु तिर्यक् मनुष्य और देव आयु का उत्कृष्ट स्थिति बन्ध उत्कृष्ट विशुद्धि परिणामों से और जघन्य स्थिति बन्ध उससे विपरीत अर्थात् कम संक्लेश परिणाम से होता है। आयु त्रिक को छोड़कर शेष सर्व प्रकृतियों की स्थितियों का उत्कृष्ट बन्ध उत्कृष्ट संक्लेश से होता है। उनका जघन्य स्थिति बन्ध विपरीत अर्थात् संक्लेश के कम होने से होता है। नारकी जीव के अन्तिम समय में उत्कृष्ट स्थिति बन्ध का अभाव है। उत्कृष्ट अनुभाग को बाँधने वाला जीव निश्चय से उत्कृष्ट स्थिति को ही बाँधता है क्योंकि उत्कृष्ट संक्लेश के बिना जीव अनुत्कृष्ट स्थिति का कम से कम अन्तर्मुहूर्त काल तक बन्ध करता है। उसके अन्तर्मुहूर्त काल तक बन्ध करता है। उसके अन्तर्मुहूर्त बाद पुनः पूर्वोक्त पूर्वो की उत्कृष्ट स्थिति का बन्ध पाया जाता है।