प्राण
जिनके द्वारा जीव जीता है उन्हें प्राण कहते हैं। प्राण दो प्रकार के माने गये हैं- भाव प्राण और द्रव्य प्राण । आत्मा के ज्ञानदर्शनोपयोग रूप चैतन्य प्राण ही भाव – प्राण हैं तथा पुद्गल द्रव्य के संयोग से उत्पन्न इन्द्रिय व्यापार आदि रूप द्रव्य प्राण हैं । द्रव्य प्राण दस प्रकार के हैं- पाँच इन्द्रिय प्राण, मन बल, वचन बल, काय बल रूप तीन बल- प्राण, श्वासोच्छवास और आयु प्राण इस तरह दस द्रव्य प्राण हैं। स्थावर जीवों के चार प्राण होते हैं- स्पर्शन इन्द्रिय, काय बल, श्वांसोच्छवास और आयु प्राण । दो इन्द्रिय जीवों के इन चारों में रसना इन्द्रिय है वचन बल मिला देने से छह प्राण होते हैं। इसमें घ्राण इन्द्रिय मिला देने पर तीन इन्द्रिय के सात प्राण होते हैं। इसमें चक्षु इन्द्रिय मिलाने पर चार इन्द्रिय के आठ प्राण होते है। इसमें कर्ण इन्द्रिय मिलाने पर अंसज्ञी पंचेन्द्रिय के नौ प्राण होते हैं तथा मन बल मिलाने पर संज्ञी पंचेन्द्रिय के दस प्राण होते हैं । अपर्याप्त अवस्था में असंज्ञी व संज्ञी पंचेन्द्रिय दोनों में मन व वचन बल प्राण तथा श्वांसोच्छवास के अभाव में सात प्राण होते हैं। अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय, द्वीन्द्रिय तथा एकेन्द्रिय में क्रम से एक-एक इन्द्रिय कम होने से छह, पाँच, चार और तीन प्राण होते हैं । सयोग केवली के वचन, श्वांसोच्छवास, आयु और काय ये चार प्राण होते हैं, उपचार से सात प्राण कहे गये हैं। अयोग केवली के एक आयु प्राण ही होता है। अपने प्राणों का घात होने पर दुख की उत्पत्ति होती है अतः (व्यवहारनय से) द्रव्य प्राण और जीव में अभेद है। देह का विनाश होने से जीव का नाश नहीं होता अतः (निश्चय नय से) दोनों भिन्न हैं ।