स्थावर जीव
स्थावर नाम कर्म के उदय से जीव स्थावर कहलाते हैं। पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पाँचों प्रकार के एकेन्द्रिय जीव स्थान हैं। स्थावर जीव के एकमात्र स्पर्शन इन्द्रिय होती है उसी के द्वारा ही जानते, देखते और खाते-पीते हैं । अण्डे में वृद्धिपने वाले प्राणी गर्भ में रहे हुए प्राणी और मूर्ति प्राप्त मनुष्य जैसे हैं वैसे ही एकेन्द्रिय जीव जानना चाहिए। समस्त लोक पाँच प्रकार के एकेन्द्रियों से सर्वत्र भरा हुआ है। लोक के, अधोभाग के, भूमिरहित एक राजू प्रमाण क्षेत्र में, निगोद आदि पाँच स्थावर जीव निवास करते हैं। सातों नरक भूमियों के नीचे एक राजू प्रमाण क्षेत्र नरक पृथ्वी से रहित है उसमें केवल पंच स्थावरों के शरीर को धारण करने वाले नाना प्रकार के निगोद आदि स्थावर जीव रहते हैं । सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म तैजस कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीव सर्वलोक में रहते हैं। इससे सिद्ध हुआ है कि नीचे के एक राजू भाग में केवल नित्य निगोदिया जीव ही नहीं रहते बल्कि एक राजू भाग में पाँचों स्थावर जीव मानना चाहिये ।