प्रत्ययिक बंध
25 प्रकृति परिणाम प्रत्यय है। इनका उदय होने के प्रथम समय में आत्मा के विशुद्ध, संक्लेश परिणाम, हानि-वृद्धि लिए जैसे पाइए तैसे हानि वृद्धि लिए इनका अनुभाग उत्कर्षण–अपकर्षण हो है। चौंतीस प्रकृति भवप्रत्यय है। आत्मा के परिणाम जैसे होई, तिनकी अपेक्षा रहित पर्याय ही का आश्रय करि इनका अनुभाग विषै षट् स्थान रूप हानि वृद्धि पाइए है, तातैं इनका अनुभाग का उदय इहाँ (उपशांत कषाय गुणस्थान में) तीन अवस्था लिए है। कदाचित् हानि रूप कदाचित् वृद्धि रूप कदाचित् अवस्थित जैसा का तैसा रहे है। ये सभी प्रत्ययिक बंध कहलाते हैं ।