पार्श्वनाथ
तेईसवें तीर्थंकर। उग्रवंशी राजा विश्वसेन और रानी ब्राह्मी (वामादेवी) के यहाँ इनका जन्म हुआ। इनकी आयु सौ वर्ष थी। नौ हाथ ऊँचा इनका शरीर हरे रंग की आभा वाला था। सोलह वर्ष की अवस्था में ये अपने नाना महीपाल के यहाँ गए। वहाँ पंचाग्नितप करने के लिए लकड़ी जलाने वाले तापस को रोका और बताया कि इसमें नागयुगल है। तब क्रोधवश उसने लकड़ी काट दी । उसमें से निकले मरणासन्न नाग के जोड़े को इन्होंने धर्मोपदेश दिया जिससे वह सप्रयुगल मरकर धरणेन्द्र और पद्मावती नाम का देव – युगल हुआ। तीस वर्ष की कुमार अवस्था में इन्होंने विरक्त होकर जिनदीक्षा ले ली। तपस्या काल में कमठ के जीव शम्वर देव ने इन पर उपसर्ग किया । धरणेन्द्र- पद्मावती ने आकर उपसर्ग निवारण किया । उपसर्ग निवारण के साथ ही इन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इनके संघ में स्वयंभू आदि दस गणधर, सोलह हजार मुनि, छत्तीस हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं। इन्होंने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया ।