नैयायिक दर्शन
प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन,दृष्टान्त, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान इन सोलह पदार्थों के तत्त्व ज्ञान से मिथ्याज्ञान का नाश होता है। उससे दोषों का अभाव होता है। दोष के न रहने पर प्रवृत्ति होती है उससे जन्म दूर होता है, जन्म के अभाव में सब दुखों का अभाव होता है, दुख के में अत्यन्त नाश का नाम ही मोक्ष है। नैयायिक लोग योग और शैव के नाम से भी पुकारे जाते हैं। इस दर्शन के मूल प्रवर्तक अक्षपाद, गौतम ऋषि हुए हैं।