नरकायु
जिसके द्वारा नर आदि भवों को जाता है वह आयु कर्म है। प्रकृति का अर्थ स्वभाव है। भव धारण आयु कर्म की प्रकृति है इस प्रकार का लक्षण किया जाता है। जिस आयुकर्म का उदय है ‘सो कर्म करि किया अर् अज्ञान, असंयम, मिथ्यात्व करि वृद्धि को प्राप्त भया’ ऐसा अनादि संसार तैं विषै चारों गति में जीव अवस्थान करें हैं। जैसे काष्ठ का खोडा अपने छिद्र में जाका पग आया होए ताकि तहाँ ही स्थिति करावै तह से आयु कर्म जिस गति संबंधी उदय रूप होए तिस ही गति विषै जीव की स्थिति करावें है। तीव्र शीत उष्ण वेदना वाले नरकों में जिसके निमित्त से दीर्घ जीवन होता वह नरक आयु है। नारकियों के अन्न आदि का आहार नहीं होता इससे यह सिद्ध होता है कि भव धारण आयु के आधीन है। बहुत आरंभ और बहुत परिग्रह करने का भाव नरक आयु का आस्रव है।