चौतीस अतिशय
चार अनन्त चतुष्टय, 34 अतिशय और आठ प्रतिहार्य ये भगवान के 46 गुण है। चौतीस अतिशय जन्म के 10 अतिशय – ( 1 ) स्वेद – रहितता, (2)निर्मलशरीरता, ( 3 ) दूध के समान सफेद खून, (4) वज वृषभनाराच संहनन, ( 5 ) समचतुरस्र शरीर संस्थान, (6)अनुपमरूप, (7) नृपचम्पक के समान उत्तम गन्ध को धारण करना, ( 8 ) 1008 उत्तम लक्षणों का धारण, ( 9 ) अनन्त बल, (10) हित मित और मधुर भाषण है। केवल ज्ञान के 10 अतिशय – (1) अपने पास से चारों दिशाओं में सौ योजन तक सुभिक्षता, (2) आकाश गमन, (3) हिंसा का अभाव, ( 4 )भोजन का अभाव, (5) उपसर्ग का अभाव, (6) सबकी ओर मुख करके उपस्थित होना, ( 7 ) छाया रहितता, ( 8 ) निर्निमेष दृष्टि, (9)विद्याओं की ईशता, (10) सजीव होते हुए भी नखों व रोमों का समान रहना । देवकृत 14 अतिशय – (1) तीर्थंकरों के महात्म्य से संख्यात योजनों तक वन असमय में ही पत्रफूल और फलों की वृद्धि से संयुक्त हो जाता है, (2)कंटक और रेती आदि को दूर करती हुई सुखदायक वायु चलने लगती है, (3) जीव पूर्व बैर को छोड़कर मैत्रीभाव से रहने लगते है, ( 4 ) उतनी भूमि दप्रण तल के सादृश्य स्वच्छ और रत्नमय हो जाती है, (5)सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से मेघकुमार देव सुगन्धित जल की वर्षा करते है, (6) देव विक्रिया से फलों के भार से नम्रीभूत शालि और जौ आदि सस्य को रचते है, (7) सब जीवों को नित्य आनंद उत्पन्न होता है, ( 8 ) वायुकुमार देव विक्रिया से शीतल पवन चलाता है, (9) कूप और तालाब आदिक निर्मल जल से पूर्ण हो जाते है, (10) आकाश धुआँ और उल्कापातादि से रहित होकर निर्मल हो जाता है, ( 11 ) सम्पूर्ण जीवों को रोग आदि की बाधाएँ नही होती ( 12 ) यक्षेन्द्रो के मस्तकों पर स्थित और किरणों से उज्जवल ऐसे चार दिव्य धर्म चक्रों को देखकर जनों को आश्चर्य होता है, ( 13 ) अठारह महाभाषा तथा 700 क्षुद्र भाषा युक्त दिव्यध्वनि, ( 14 ) तीर्थंकरों के चारों दिशाओं में (व विदिशाओं) छप्पन सुवर्ण कमल, एक पादपीठ और दिव्य एवं विविध प्रकार के पूजन द्रव्य होते है।