केवली
जिनका ज्ञान आवरण रहित है, वे केवली कहलाते हैं अथवा ज्ञानावरण का अत्यन्त क्षय हो जाने पर जिनके स्वाभाविक अनन्त ज्ञान प्रकट हो गया है, जिनका ज्ञान परिपूर्ण है और इन्द्रिय क्रम व्यवधान से परे है, वे केवली हैं। तदद्भवस्थ केवली और सिद्ध केवली के भेद से केवली दो प्रकार के होते हैं। जिस पर्याय में केवलज्ञान प्राप्त हुआ है, उसी पर्याय में स्थित केवली को तद्भवस्थ केवली कहते हैं और सिद्ध जीवों को सिद्ध केवली कहते हैं। सयोग और अयोग ऐसे दो भेद भी केवली के हैं। जो तीनों योगों से युक्त होते हैं वे सयोग केवली कहलाते हैं अथवा जो योग सहित हैं तथा केवलज्ञान से विभूषित हैं वे सयोग कहलाते हैं जिनके पुण्य और पाप उत्पन्न करने वाले शुभ और अशुभ योग नहीं होते हैं वे अयोग केवली कहलाते हैं अथवा जो योग से रहित हैं तथा केवलज्ञान से विभूषित हैं उन्हें अयोग केवली कहते हैं। पाँच, तीन व दो कल्याणक युक्त केवली अर्थात् तीर्थंकर केवली, गन्धकुटी युक्त केवली अर्थात् सातिशयके वली, मूककेवली. उपसर्गकेवली अन्तकृत केवली ऐसे मेद मी केवली के हैं। केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर समस्त अर्हन्तों का परम औदारिक शरीर पृथ्वी से पाँच हजार धनुष (30,000 फीट) प्रमाण ऊपर चला जाता है केवली भगवान का शरीर निगोद जीवों से रहित होता है। सयोग केवली के प्रतिसमय नोकर्म वर्गणाओं का ग्रहण होता रहता है। समुद्घातगत केवली के प्रतरः अवस्था के दो समय और एक लोकपूरण का समय इन तीन समयों में नोकर्म वर्गणाओं का नियम से ग्रहण नहीं होता। केवली भगवान के भावमन नहीं होता परन्तु द्रव्यमन का सद्भाव होने से उनके उपचार से मनोयोग माना गया है।