ओघालोचना
आलोचना के दो भेद हैं- एक ओघालोचना और पदविभागी आलोचना अर्थात् सामान्य आलोचना और विशेष आलोचना, जिसमें अपरिमत अपराध किये हैं और जिसके रत्नत्रय का सर्व व्रतों का नाश हुआ है, वह मुनि सामान्य रीति से अपराध का निवेदन करता है अर्थात् मैं रत्नत्रय से आप लोगों से छोटा हूँ, ऐसा कहना सामान्य आलोचना है।