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गाथा | पंच परमागम | अधिकार | गाथा क्रमांक | Tags | पहली अंतिम |
कर नमन जिनवर वृषभ एवं वीर श्री वर्द्धमान को। | अष्ट पाहुड़ | दर्शन पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
संक्षिप्त दिग्दर्शन यथाक्रम करूं दर्शनमार्ग का ।।१।। | अष्ट पाहुड़ | दर्शन पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
अरहंत-भासित ग्रथित-गणधर सूत्र से ही श्रमणजन । | अष्ट पाहुड़ | सूत्र पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
परमार्थ का साधन करें अध्ययन करो हे भव्यजन ।।१।। | अष्ट पाहुड़ | सूत्र पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
मंगलाचरण सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी अमोही अरिहंत जिन । | अष्ट पाहुड़ | चारित्र पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
त्रैलोक्य से हैं पूज्य जो उनके चरण में कर नमन ।। १ ।। | अष्ट पाहुड़ | चारित्र पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
शास्त्रज्ञ हैं सम्यक्त्व संयम शुद्धतप संयुक्त हैं। | अष्ट पाहुड़ | बोध पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
कर नमन उन आचार्य को जो कषायों से रहित हैं ।। १ ।। | अष्ट पाहुड़ | बोध पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
मंगलाचरण सुर असुर इन्द्र नरेन्द्र वंदित सिद्ध जिनवरदेव अर। | अष्ट पाहुड़ | भाव पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
सब संयतों को नमन कर इस भावपाहुड़ को कहूँ ।। १ ।। | अष्ट पाहुड़ | भाव पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
परद्रव्य को परित्याग पाया ज्ञानमय निज आतमा । | अष्ट पाहुड़ | मोक्ष पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
शत बार उनको हो नमन निष्कर्म जो परमातमा ।। १ ।। | अष्ट पाहुड़ | मोक्ष पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
कर नमन श्री अरिहंत को सब सिद्ध को करके नमन । | अष्ट पाहुड़ | लिंग पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
संक्षेप में मैं कह रहा हूँ लिंगपाहुड शास्त्र यह ।। १ ।। | अष्ट पाहुड़ | लिंग पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
विशाल जिनके नयन अर रक्तोत्पल जिनके चरण । | अष्ट पाहुड़ | शील पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
त्रिविध नम उन वीर को मैं शील गुण वर्णन करूँ ।। १ ।। | अष्ट पाहुड़ | शील पाहुड़ | 1 | मंगलाचरण | पहली |
ध्रुव अचल अरु अनुपमगति, पाये हुये सब सिद्धको, | समयसार | पूर्वरंग | 1 | मंगलाचरण | पहली |
मैं वन्द श्रुत केवलि कथित, कहूँ समयप्राभुतको अहो ।१॥ | समयसार | पूर्वरंग | 1 | मंगलाचरण | पहली |
शतइन्द्र वन्दित त्रिजगहित निर्मल मधुर जिनके वचन । | पंचास्तिकाय संग्रह | षट द्रव्य व्याख्यान रूप पीठिका | 1 | मंगलाचरण | पहली |
अनन्त गुणमय भवजयी जिननाथ को शत-शत नमन ।। १ ।। | पंचास्तिकाय संग्रह | षट द्रव्य व्याख्यान रूप पीठिका | 1 | मंगलाचरण | पहली |
सुर असुर इन्द्र नरेन्द्र वंदित कर्ममल निर्मलकरन। | प्रवचन सार | ज्ञान तत्त्व प्रज्ञापन – मंगलाचरण व भूमिका | 1 | मंगलाचरण | पहली |
वृषतीर्थ के करतार श्री वर्द्धमान जिन शत-शत नमन ।। १।। | प्रवचन सार | ज्ञान तत्त्व प्रज्ञापन – मंगलाचरण व भूमिका | 1 | मंगलाचरण | पहली |
वर नंत दर्शनज्ञानमय जिनवीर को नमकर कहूँ । | नियमसार अनुशीलन | जीव | 1 | मंगलाचरण | पहली |
यह नियमसार जु केवली श्रुतकेवली द्वारा कथित ।। १ | नियमसार अनुशीलन | जीव | 1 | मंगलाचरण | पहली |
नमकर अनन्तोत्कृष्ट दर्शनज्ञानमय जिन वीरको । | नियमसार | जीव | 1 | मंगलाचरण | पहली |
कहुँ नियमसार सु केवलीश्रुतकेवलीपरिकथितको ।।१।। | नियमसार | जीव | 1 | मंगलाचरण | पहली |
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