कर्म वर्गणा के योग्य स्कन्ध सूक्ष्म है। कर्म वर्गणादि की जिन्हें सूक्ष्मपना है और जो इन्द्रियों से ज्ञान न हो ऐसे हैं वे सूक्ष्म हैं ।
शुक्लध्यान वितर्क रहित अवीचार सूक्ष्म क्रिया वाले आत्मा के होता है । यह ध्यान सूक्ष्म काययोग से प्रवृत्त होता है । त्रिकाल विषयक पदार्थों को युगपत् प्रगट करने वाला है। इस सूक्ष्मकाय योग में रहने वाले केवली इस तृतीय शुक्ल …
जो अतीन्द्रिय ज्ञान (केवलज्ञान) का विषय है वह सिद्धों का सूक्ष्मत्व नाम का गुण है यह सूक्ष्मत्व गुण सिद्धों में नामकर्म के अभाव से उत्पन्न होता है।
अन्तर प्रकाश रूप स्वरूप ज्योति रूप नित्य ऐसी सूक्ष्मा कहिए क्षयोपशम से प्रगटी आत्मा की अक्षर को ग्रहण करने की तथा कहने की शक्ति रूप लब्धि। जैनागम के अनुसार इसे लब्धिरूप भाव वचन स्वीकारा गया है ।