लोक व्यवहार में जन्म-मरण के निमित्त से हुई अशुद्धि के शोधन को सूतक कहते हैं। मरण के निमित्त से होने वाले सूतक का काल तीन पीढ़ी तक बारह दिन, चौथी पीढ़ी में दस दिन, पाँचवी पीढ़ी में छह दिन, छठवी …
दीक्षा आदि के निरूपक आचारांगादि सूत्रों के सुनने मात्र से जिन्हें सम्यग्दर्शन हुआ है, वे सूत्ररुचि हैं।
दीक्षा आदिक के निरूपक आचारांगादि सूत्रों के सुनने मात्र से जिन्हें सम्यग्दर्शन हुआ है। वे सूत्र रुचि है।
‘क्या कल्प है और क्या अकल्प है तथा छेदोपस्थापना आदि व्यवहार धर्म की क्रियाओं का जिसमें वर्णन है वह सूत्रकृतांग है ।