सुख-दुःख युक्त पुरुषों को वसतिका, आहार, औषध आदि कर उपकार करना तथा मैं और मेरी वस्तुएँ आपकी हैं ऐसा वचन कहना वह सुख-दुःखोपसंयत है।
सुख-दुःख युक्त पुरुषों को वसतिका, आहार, औषध आदि कर उपकार करना तथा मैं और मेरी वस्तुएँ आपकी हैं ऐसा वचन कहना वह सुख-दुःखोपसंयत है।
अनुभव में आए हुए विविध इन्द्रियसुखों का पुन: – पुनः स्मरण करना सुखानुबन्ध है।
इन्द्र के योग्य सुख भोगते हुए देव लोक में चिरकाल तक रहना ।
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