राजा कीर्तिधर का पुत्र था । मुनि (अपने पिता) की धर्मवाणी श्रवण कर दीक्षा ग्रहण कर ली। तपश्चरण करते हुए को माता ने शेरनी बनकर खा लिया । जीवन के अंतिम क्षण में निर्वाण प्राप्त किया । सुख : जगत …
सुख-दुःख युक्त पुरुषों को वसतिका, आहार, औषध आदि कर उपकार करना तथा मैं और मेरी वस्तुएँ आपकी हैं ऐसा वचन कहना वह सुख-दुःखोपसंयत है।